विविध >> रेत और झाग रेत और झागखलील जिब्रान
|
7 पाठकों को प्रिय 184 पाठक हैं |
ख़लील जिब्रान की पुस्तक Sand and Foam का हिन्दी अनुवाद...
Ret Aur Jhag - An Hindi Book by Khalil Jibbran
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘रेत और झाग’ एक बेहद महत्त्वपूर्ण पुस्तक है जिसमें ख़लील जिब्रान की बहुमूल्य सूक्तियां ज्ञान-वाक्य रूप में संकलित हैं। इस पुस्तक का प्रकाशन सत्तर वर्ष से भी पहले हुआ था और तब से ख़लील जिब्रान की रचनाओं का अनुवाद दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में हो चुका है और आज भी संसार-भर के पाठक, बिना किसी आयु, वर्ग, जाति या स्त्री-पुरुष के भेदभाव के उनकी रचनाओं को प्रासंगिक मानते हैं। ख़लील जिब्रान की रहस्यवादी चित्रकारी ने इस पुस्तक की प्रस्तुति में विशेष निखार ला दिया है।
6 जनवरी 1883 में लेबनान में जन्मे ख़लील जिब्रान का अधिकांश जीवन अमेरिका में बीता और उन्होंने पच्चीस पुस्तकों की रचना की। वह एक निबंधकार, उपन्यासकार, कवि तथा चित्रकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए और उनकी रचनाओं से पीढ़ियों ने निरंतर जीवन, प्रेम तथा सहभागिता के नये अर्थ से प्रेरणा ग्रहण की।
6 जनवरी 1883 में लेबनान में जन्मे ख़लील जिब्रान का अधिकांश जीवन अमेरिका में बीता और उन्होंने पच्चीस पुस्तकों की रचना की। वह एक निबंधकार, उपन्यासकार, कवि तथा चित्रकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए और उनकी रचनाओं से पीढ़ियों ने निरंतर जीवन, प्रेम तथा सहभागिता के नये अर्थ से प्रेरणा ग्रहण की।
रेत और झाग
इन समुद्र-तटों पर मैं उनके रेत और झागों के बीच सदा के लिए चलता रहूंगा। निस्सन्देह समुद्र का चढ़ाव मेरे चरण-चिह्नों को मिटा देगा और हवा समुद्र के झागों को उड़ाकर ले जायेगी, परन्तु यह समुद्र और उसका तट सदा के लिए-अनंत काल तक के लिए-रहेंगे।
*
एक बार मैंने अपनी मुट्ठी कुहरे से भरी। फिर जो उसे खोला, तो कुहरे को एक कीड़ा बना पाया।
मैंने दुबारा मुट्ठी बंद की और खोली, तो वहां कीड़े की जगह एक चिड़िया थी।
फिर मैंने उसे बंद किया और खोला, तो तेरी हथेली पर एक आदमी खड़ा था, जिसका चेहरा शोकातुर था और दृष्टि ऊपर की तरफ।
अन्तिम बार मैंने फिर मुट्ठी बंद की और फिर जो उसे खोला, तो वहां कुहरे के सिवाय और कुछ भी न था।
परन्तु इस बार मैंने एक अत्यन्त मधुर और रसीला गीत सुना।
मैंने दुबारा मुट्ठी बंद की और खोली, तो वहां कीड़े की जगह एक चिड़िया थी।
फिर मैंने उसे बंद किया और खोला, तो तेरी हथेली पर एक आदमी खड़ा था, जिसका चेहरा शोकातुर था और दृष्टि ऊपर की तरफ।
अन्तिम बार मैंने फिर मुट्ठी बंद की और फिर जो उसे खोला, तो वहां कुहरे के सिवाय और कुछ भी न था।
परन्तु इस बार मैंने एक अत्यन्त मधुर और रसीला गीत सुना।
*
कल तक मेरा विचार था कि मैं एक सूक्ष्म टुकड़ा हूं जो अनियमित रूप से जीवन के घेरे में चक्कर लगा रहा है। पर आज मैं यह समझता हूं कि मैं स्वयं ही वह घेरा हूं जिसमें समस्त जीवन नियमित रूप से घूमने वाले टुकड़ों के साथ चक्कर लगा रहा है।
*
लोग अपनी जाग्रत अवस्था में मुझसे कहते हैं, ‘‘तू और यह संसार, जिसमें तू रहता है, एक अनन्त समुद्र के अनन्त तट का केवल रज कण मात्र है।’’
और मैं अपनी स्वप्नमय अवस्था में उनसे कहता हूं, ‘‘मैं तो अनन्त समुद्र हूं और तीनों लोक मेरे तट पर रज के कण हैं।’’
और मैं अपनी स्वप्नमय अवस्था में उनसे कहता हूं, ‘‘मैं तो अनन्त समुद्र हूं और तीनों लोक मेरे तट पर रज के कण हैं।’’
*
मैं केवल एक बार ही निरुत्तर हुआ हूं। ऐसा भी तब ही हुआ, जबकि एक आदमी ने मुझसे पूछा, ‘‘तुम कौन हो ?’’
*
परमात्मा के सर्वप्रथम विचार में एक देवता था। पर परमात्मा के सर्वप्रथम वचन से मानव-इन्सान ही निकला।
*
समुद्र और जंगल की वायु से हमें वाणी मिलने से सहस्रों वर्ष पहले, हम इन्सान सृष्टि के फड़फड़ाते और घूमते हुए इच्छुक जीव मात्र थे। जब ऐसी अवस्था हो, तो फिर हम अपनी पुरानी बातों को केवल कल के शब्दों में किस तरह वर्णन कर सकते हैं।
*
स्फिंक्स1 अपने जीवन में केवल एक ही बार बोला और तब उसने यही कहा, ‘एक रजकण मरुस्थल-सहारा है और एक मरुस्थल रजकण है। अब हम सबको मौन धारण कर लेना चाहिए।’’
मैंने उसकी बात सुनी तो अवश्य, पर मैं समझा कुछ भी नहीं।
मैंने उसकी बात सुनी तो अवश्य, पर मैं समझा कुछ भी नहीं।
*
मैंने एक बार एक स्त्री के चेहरे पर नज़र डाली और उसके उन बच्चों को देख लिया, जो अब तक पैदा भी नहीं हुए थे।
एक स्त्री ने मुझे देखा और उसने मेरे सभी पूर्वजों को जान लिया, यद्यपि वे उसके जन्म से पहले ही मर चुके थे।
एक स्त्री ने मुझे देखा और उसने मेरे सभी पूर्वजों को जान लिया, यद्यपि वे उसके जन्म से पहले ही मर चुके थे।
*
1. यूनान के पौराणिक साहित्य में एक ऐसे राक्षस का उल्लेख है, जिसके पंख होते हैं और जिसका शरीर शेर का और मुख स्त्री का होता है। इसके बारे में यूनान में कई कथाएं प्रसिद्ध हैं। इसे स्फिंक्स कहते हैं। मिस्र देश के प्राचीन साहित्य में भी स्फिंक्स नाम की मूर्ति का वर्णन है, जिसका शरीर शेर का और मुख स्त्री का बताया गया है।
*
मैं चाहता हूं कि मैं अपने परम ध्येय की पूर्ति करूं। परन्तु यह कैसे हो सकता है, जब तक कि मैं स्वयं अपने-आपको उस महानता में लीन न कर दूं, जो बुद्धिमान आदमियों के जीवन में पाई जाती है ?
क्या यही महानता हर एक मानव का ध्येय नहीं है ?
क्या यही महानता हर एक मानव का ध्येय नहीं है ?
*
मोती एक ऐसा मन्दिर है, जिसे दु:ख और कष्ट के हाथों ने एक रजकण के इर्दगिर्द निर्माण किया है।
तो फिर कौन-सी इच्छा ने हमारे शरीरों का निर्माण किया और वह कौन-से रजकण हैं जिनके गिर्द हमारे शरीरों को बनाया ?
तो फिर कौन-सी इच्छा ने हमारे शरीरों का निर्माण किया और वह कौन-से रजकण हैं जिनके गिर्द हमारे शरीरों को बनाया ?
*
जब परमात्मा ने मुझे एक छोटी-सी कंकरी के रूप में इस अद्भुत झील में फेंका, तो मैंने अनन्त घेरे बनाकर इसके तल की शांति में विघ्न डाल दिया।
पर जब मैं इसकी गहराइयों में पहुंचा तो बहुत ही शांत हो गया।
पर जब मैं इसकी गहराइयों में पहुंचा तो बहुत ही शांत हो गया।
*
मुझे खामोशी प्रदान कर दो, फिर मैं रात को चुनौती देकर उससे आगे बढ़ जाऊंगा।
*
मेरा दूसरा जन्म उस समय हुआ, जब मेरी आत्मा और मेरे शरीर ने आपस में प्रेम किया और उन दोनों का संबंध हो गया।
*
मेरा एक आदमी से परिचय हुआ, जिसकी सुनने की शक्ति बहुत तेज थी, पर वह गूंगा था, जिसकी जिह्वा एक लड़ाई में जाती रही थी।
*
आज मैं उन सभी लड़ाइयों को जानता हूं, जो कि उस आदमी ने लड़ी थी। इससे पहले कि वह महान् मौन उसे प्राप्त हुआ, मैं प्रसन्न हूं कि वह मर गया है, क्योंकि यह संसार हम दोनों के लिए काफी नहीं है।
*
मैं एक युग तक खामोश और ऋतुओं से अनभिज्ञ मिस्र देश की रेत में पड़ा रहा।
इसके बाद सूर्य ने मुझे जन्म दिया और मैं उठ खड़ा हुआ; और मैं दिनों में गाता हुआ और रातों में स्वप्न देखता हुआ नील नदी के किनारे-किनारे चलने लगा।
अब सूर्य अपनी सहस्रों किरणों से मुझ पर आक्रमण कर रहा है, जिससे मैं दुबारा मिस्र की रेत में सो जाऊं।
इसके बाद सूर्य ने मुझे जन्म दिया और मैं उठ खड़ा हुआ; और मैं दिनों में गाता हुआ और रातों में स्वप्न देखता हुआ नील नदी के किनारे-किनारे चलने लगा।
अब सूर्य अपनी सहस्रों किरणों से मुझ पर आक्रमण कर रहा है, जिससे मैं दुबारा मिस्र की रेत में सो जाऊं।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book